विशेष रिपोर्ट: रेफरल पर लगी रोक, मगर डॉक्टरों की कमी ने पहाड़ की सेहत बिगाड़ी

रेफरल पर लगी रोक, मगर डॉक्टरों की कमी ने पहाड़ की सेहत बिगाड़ी

देहरादून। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए इलाज कराना आज भी एक चुनौती से कम नहीं है। सरकारी अस्पतालों में न तो पर्याप्त सुविधाएं हैं और न ही विशेषज्ञ डॉक्टर।

ऐसे में मरीजों को हल्की बीमारी में भी मैदानी इलाकों के बड़े अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है। इससे मरीजों और उनके परिजनों को आर्थिक, मानसिक और शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

अब इस समस्या पर लगाम लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने सख्त कदम उठाया है। विभाग ने रेफरल को लेकर एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) जारी कर दी है।

इस एसओपी में यह तय किया गया है कि बिना ठोस कारण के किसी भी मरीज को रेफर नहीं किया जाएगा। लेकिन सवाल उठता है कि जब अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टर ही मौजूद नहीं हैं, तो रेफरल से कैसे बचा जा सकता है?

विशेषज्ञों की भारी कमी, आंकड़े चौंकाने वाले

प्रदेश में कुल 1276 विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन तैनाती सिर्फ 668 की ही हो सकी है। यानी 608 पद अभी भी खाली हैं। कई ज़िलों में तो एक भी विशेषज्ञ नहीं है। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट बताती है कि फिजिशियन, स्त्रीरोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ, मनोरोग, फॉरेंसिक और चर्म रोग विशेषज्ञों की स्थिति बेहद खराब है।

उदाहरण के लिए:

  • फिजिशियन: 178 पदों में से 128 पद खाली
  • स्त्रीरोग विशेषज्ञ: 173 में से 106 पद खाली
  • बाल रोग विशेषज्ञ: 158 में से 81 पद खाली
  • चर्म रोग विशेषज्ञ: 34 में से 27 पद खाली
  • मनोरोग विशेषज्ञ: 29 में से 22 पद खाली

सरकार के निर्देश, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और

स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने साफ किया है कि अब डॉक्टर फोन या ईमेल के ज़रिए रेफरल नहीं कर सकते। मरीज की जांच ऑन-ड्यूटी डॉक्टर को करनी होगी और रेफर करने का कारण लिखित रूप में दर्ज करना अनिवार्य होगा। अगर बेवजह रेफरल किया गया तो संबंधित सीएमओ या सीएमएस को जवाब देना होगा।

लेकिन असल दिक्कत यह है कि जब डॉक्टर ही नहीं हैं, तो जिम्मेदारी किसकी होगी? विभाग का कहना है कि साल 2027 तक प्रदेश में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी को चरणबद्ध तरीके से दूर कर लिया जाएगा।

इस वक्त 350 डॉक्टर पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हैं, जबकि 223 एमबीबीएस डॉक्टर जल्द ही स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल होने वाले हैं।

डॉक्टरों को नहीं भा रहा पहाड़

सरकार ने “यू कोट वी पे” जैसी योजनाएं भी चलाई हैं, जिसमें डॉक्टरों को मनपसंद वेतन देकर पहाड़ में तैनात किया जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद हालात नहीं सुधर रहे। कुछ विभागों जैसे नेत्र रोग, ऑर्थो सर्जरी और पैथोलॉजी में जरूर स्थिति बेहतर है, जहां स्वीकृत पदों से ज्यादा डॉक्टर कार्यरत हैं।

पहाड़ के मरीजों की मजबूरी बन गया है रेफरल

जब तक विशेषज्ञ डॉक्टरों की स्थायी और समुचित नियुक्ति नहीं होगी, तब तक कोई भी एसओपी कागज़ी नियम ही साबित होगा। सरकार की मंशा चाहे जितनी भी नेक हो, लेकिन बिना ज़मीनी व्यवस्था के मरीजों को गांव में इलाज देना सिर्फ एक सपना बनकर रह जाएगा।