हाईकोर्ट से उठी गैरसैंण की गूंज। जस्टिस थपलियाल की तल्ख टिप्पणी, कहा- जनता को झुनझुना पकड़ा रहे हैं नेता
नैनीताल। उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैंण को लेकर एक बार फिर सियासी बहस तेज हो गई है — लेकिन इस बार शुरुआत किसी राजनेता ने नहीं, बल्कि नैनीताल हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस राकेश थपलियाल ने की है। उनकी कोर्ट की एक लाइव स्ट्रीमिंग फुटेज वायरल हो रही है, जिसमें वह राजधानी के मुद्दे पर बेहद तल्ख नजर आते हैं और नेताओं की नीयत पर सीधा सवाल उठाते हैं।
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“उत्तराखंड की पब्लिक क्या बेवकूफ है?”
कोर्ट की सुनवाई के दौरान जस्टिस थपलियाल ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के ताजा बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी। हरदा ने हाल ही में कहा था कि यदि 2027 में कांग्रेस सत्ता में आती है, तो वह गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाएंगे। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए
न्यायमूर्ति थपलियाल ने कहा, “उत्तराखंड की पब्लिक क्या बेवकूफ है? चुनाव जीतने के लिए उन्हें गैरसैंण स्थाई राजधानी का झुनझुना थमाओ और फिर सो जाओ।”
8 हजार करोड़ की संपत्ति और ‘अटैची लेकर जाना है’ वाली टिप्पणी
उन्होंने यह भी कहा कि गैरसैंण में विधानसभा भवन समेत करीब 8 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति है। सभी व्यवस्थाएं हैं, सिर्फ अटैची लेकर जाना है। उन्होंने नेताओं की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब वह सत्ता में थे, तो गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित क्यों नहीं किया?
हिल कैपिटल होती तो पहाड़ों की तस्वीर बदल जाती
राजधानी देहरादून में विकास के केंद्रीकरण पर भी न्यायमूर्ति ने नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि
“यदि यह प्रदेश शुरू से हिल कैपिटल होता, तो गांव-गांव में स्कूल, अस्पताल, बिजली जैसी सुविधाएं होतीं। लेकिन अफसोस कि विकास का पैमाना केवल देहरादून बन गया है।”
राजनीति पर सीधी चोट
जस्टिस थपलियाल की टिप्पणी सिर्फ गैरसैंण को लेकर नहीं थी, बल्कि उन्होंने उन राजनीतिक दलों की मानसिकता को भी बेनकाब किया, जो सत्ता में आने के बाद इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। यह टिप्पणी सियासत के उस पहलू को उजागर करती है, जिसमें जनता के गंभीर मुद्दों को केवल चुनावी फायदे के लिए उछाला जाता है।
हाईकोर्ट से उठी यह गूंज केवल एक टिप्पणी नहीं है, यह उन लाखों पहाड़ी नागरिकों की भावनाओं की आवाज है, जो सालों से राजधानी के नाम पर छलावों का सामना कर रहे हैं। गैरसैंण की मांग अब राजनीतिक सौदेबाजी नहीं, बल्कि जनता की नियति और राज्य के संतुलित विकास का प्रश्न बन चुकी है।