उत्तराखंड में नीतियों की दुर्गंध। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट बना कागज़ी सपना, करोड़ों लौटाने का आदेश
- दस साल, सैकड़ों फाइलें, करोड़ों रुपये और… ज़ीरो नतीजा
देहरादून। स्वच्छ भारत मिशन के तहत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की बहुप्रतीक्षित योजना उत्तराखंड में फाइलों से बाहर ही नहीं निकल पाई।
10 वर्षों में न तो सभी निकायों में प्रोजेक्ट शुरू हो सके, न ही अधिकांश जगहों पर जमीन या कानूनी बाधाओं को पार किया गया। अब केंद्र सरकार द्वारा जारी 48.42 करोड़ रुपये की राशि को सभी निकायों को दो दिन में लौटाने का आदेश दिया गया है।
2014 में मिले थे 71.58 करोड़, अब लौटाने की नौबत
स्वच्छ भारत मिशन 1.0 की शुरुआत 2014 में हुई थी। योजना के तहत केंद्र ने उत्तराखंड को 71.58 करोड़ रुपये का बजट दिया था, जिसमें से 48.42 करोड़ विभिन्न निकायों को जारी किए गए। लेकिन 10 साल बाद भी अधिकांश निकाय इस राशि का सदुपयोग नहीं कर पाए।
ऋषिकेश, गंगोलीहाट समेत कई निकाय न शुरू कर सके प्रोजेक्ट
कहीं जमीन नहीं मिली, कहीं वनभूमि हस्तांतरण अटक गया, और कहीं स्थानीय विरोध के चलते मामला कोर्ट में चला गया। नतीजा—89 में से ज्यादातर निकाय प्रोजेक्ट ही शुरू नहीं कर पाए। देहरादून का शीशमबाड़ा अपवाद रहा, जहां कुछ हद तक प्रोजेक्ट कार्यान्वित हुआ।
अब लौटाने होंगे केंद्रांश और राज्यांश
हाल ही में हुई उच्च स्तरीय बैठक में निर्णय लिया गया कि अब सभी निकायों को प्रोजेक्ट क्लोजर रिपोर्ट के साथ केंद्रांश व राज्यांश लौटाना होगा। अब तक 20.62 करोड़ के उपयोगिता प्रमाणपत्र भेजे जा चुके हैं, जबकि शेष धनराशि की वापसी की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
ऋषिकेश का टेंडर भी हुआ निरस्त
ऋषिकेश नगर निगम ने काफी प्रयासों के बाद टेंडर प्रक्रिया तक तो पहुंच बनाई थी, लेकिन अब यह भी रद्द हो जाएगा। केंद्र ने वर्ष 2023 में ही योजना को बंद कर दिया था, ऐसे में अब कोई नया बजट नहीं मिलेगा।
अब बनेगी नई तकनीक आधारित योजना
शहरी विकास विभाग के अनुसार, 15 से 20 वर्ष की भावी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की नई परियोजनाएं तैयार की जाएंगी। इसमें आधुनिक तकनीकी का उपयोग किया जाएगा।
“सभी निकायों से दो दिन में केंद्रांश व राज्यांश लौटाने को कहा गया है। उपयोगिता प्रमाणपत्र भी मांगे गए हैं।”
– डॉ. ललित नारायण मिश्र, अपर निदेशक, शहरी विकास