विशेष रिपोर्ट: ‘खूपी’ गांव की पुकार। एक दशक से भूस्खलन की चपेट में, प्रशासन मौन

‘खूपी’ गांव की पुकार। एक दशक से भूस्खलन की चपेट में, प्रशासन मौन

नैनीताल। सरोवर नगरी के तलहटी में बसा खूपी गांव पिछले एक दशक से अधिक समय से भूस्खलन की चपेट में है, और अब इस गांव का अस्तित्व ही खतरे में है।

साल 2014 से शुरू हुई यह त्रासदी अब विकराल रूप ले चुकी है। लगातार हो रहे भूस्खलन के चलते गांव की ज़मीन धंस रही है, घरों में दरारें पड़ चुकी हैं, और कई परिवार गांव छोड़ने को मजबूर हो चुके हैं।

गांव की निवासी मुन्नी देवी बताती हैं कि अब तक करीब 100 नाली भूमि भूस्खलन में समा चुकी है। उनके अनुसार, “हमने मेहनत-मजदूरी कर दो कमरे का घर बनाया था, लेकिन अब उसमें बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं। घर कभी भी गिर सकता है, लेकिन प्रशासन ने अब तक हमारी सुध नहीं ली।”

स्थानीय महेंद्र प्रसाद के मुताबिक, “2011 से ही गांव में हल्का भूस्खलन शुरू हो गया था, जो अब बड़े खतरे में बदल गया है। हमने कई बार नेताओं और अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिला।”

खूपी गांव की भौगोलिक स्थिति भी इसे बेहद संवेदनशील बनाती है। यह गांव बलिया नाले और नैनीताल कैंट एरिया की तलहटी में बसा है, जो भूगर्भीय रूप से अस्थिर माना जाता है। ऊपर स्थित आलूखेत गांव और आर्मी कैंट एरिया भी अब भूस्खलन के खतरे की जद में हैं।

इस संबंध में नैनीताल के SDM नवाजिश खालिक ने बताया कि प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थान पर विस्थापित करने की योजना बनाई जा रही है। “पहले एक स्थल चिन्हित किया गया था, जिसे भूगर्भीय जांच में असुरक्षित पाया गया। अब दूसरे विकल्प की तलाश की जा रही है।”

सवाल उठता है- कब जागेगा प्रशासन?

खूपी गांव की यह स्थिति सिर्फ एक गांव की त्रासदी नहीं है, बल्कि पूरे नैनीताल की जलवायु संवेदनशीलता और आपदा प्रबंधन पर भी सवाल खड़े करती है।
क्या एक और तबाही के इंतजार में हैं हम?