वीडियो: पीठ पर राशन लेकर उफनती नदी पार करता युवक। कई वर्षों से पुल की मांग, देखें वीडियो….

पीठ पर राशन लेकर उफनती नदी पार करता युवक। कई वर्षों से पुल की मांग, देखें वीडियो….

चमोली। उत्तराखंड के चमोली जनपद से एक चौंका देने वाला और आंखें खोल देने वाला वीडियो सामने आया है, जो राज्य की दुर्गम परिस्थितियों और सिस्टम की उपेक्षा की गवाही देता है।

वीडियो में एक ग्रामीण अपने कंधों पर राशन का भारी बोझ उठाए हुए एक उफनती और जानलेवा नदी को पार करता नजर आ रहा है।

देखें वीडियो:-

ऐसे खतरनाक बहाव में नदी पार करना बड़ी हिम्मत का काम है, लेकिन ये उस शख्स की हकीकत है, जो हर महीने अपने परिवार का पेट पालने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर नदी पार करता है।

यह मामला चमोली जनपद के मिमराणी, सकनड और एगड़ी जैसे उन गांवों से जुड़ा है, जो दशोली और नंदानगर घाट विकासखंड से जुड़े हैं। इन गांवों को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाला कोई स्थायी पुल नहीं है।

बारिश के मौसम में नदी का जलस्तर बढ़ जाता है, जिससे ये रास्ते और भी खतरनाक हो जाते हैं। ग्रामीणों को अपने रोजमर्रा के कार्यों, खासतौर पर राशन और जरूरी सामान लाने के लिए इसी नदी को पार करना पड़ता है।

ग्रामीणों का कहना है कि वे पिछले कई वर्षों से पुल की मांग कर रहे हैं। पंचायत स्तर से लेकर जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों तक हर जगह अपनी गुहार लगा चुके हैं, लेकिन नतीजा हर बार सिर्फ “आश्वासन” रहा है। इस दौरान कई हादसे भी हुए हैं, लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं।

इस हाल ही में सामने आए वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि कैसे एक व्यक्ति कमर तक पानी में डूबकर, कंधे पर राशन का बोरा उठाए, बहाव से लड़ते हुए नदी पार कर रहा है।

यह मन्ज़र न सिर्फ दिल दहलाने वाला है, बल्कि ये भी सवाल उठाता है कि 21वीं सदी के भारत में, विकास की बात करने वाले राज्यों में, क्या अब भी नागरिकों को ऐसे जोखिम उठाने पड़ते हैं?

ग्रामीणों इन दिनों काफी परेशान हैं। उनका कहना है कि उनकी और उनके बच्चों की जान खतरे में न पड़े। “हमने सरकार से बस एक पुल की मांग की है जिससे हमारी रोजमर्रा की जिंदगी थोड़ी आसान हो जाए,” एक स्थानीय निवासी की यह बात बहुत कुछ कह जाती है।

इस वीडियो के माध्यम से एक बार फिर यह मुद्दा सामने आया है, और उम्मीद की जानी चाहिए कि अब प्रशासन और राज्य सरकार इस गंभीर स्थिति पर ध्यान देगी। यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं है, बल्कि उत्तराखंड के उन कई गांवों की सच्चाई है, जहां बुनियादी सुविधाएं अब भी बोहत दूर हैं।