वनाग्नि नियंत्रण के लिए फारेस्ट फायर App लांच, पढ़ें….
देहरादून। उत्तराखंड के जंगलों को बचाने के लिए अब दुनिया का सबसे एडवांस फॉरेस्ट फायर एप्लीकेशन इस्तेमाल किया जायेगा। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका समेत दुनिया के कई देशों में प्रयोग में लाए जा रहे एप्लीकेशन का अध्ययन करने के बाद इस एप को बनाया गया है।
खास बात यह है कि भारतीय वन सेवा के अफसर ने खुद इस पर सालों तक रिसर्च की और फिर अपने कार्यक्षेत्र में इसका दो साल तक ट्रायल भी किया। जानिए उत्तराखंड का फॉरेस्ट फायर एप क्यों है खास।
वनाग्नि नियंत्रण के लिए लेटेस्ट एप
दुनिया के ऐसे कई देश हैं जो जंगलों की आग को लेकर अक्सर बड़ी समस्या में घिरते दिखे हैं। हाल ही में लॉस एंजिल्स के जंगलों में लगी आग ने तो पूरी दुनिया को वनाग्नि पर सोचने को मजबूर किया है।
भारत में उत्तराखंड उन राज्यों में शुमार है, जहां जंगलों की आग हर साल चिंता का सबब रही है. ऐसा नहीं है कि वन विभाग या सरकार इस पर गंभीर न हों।
लेकिन घने जंगलों में आग लगने के बाद इसे काबू कर पाना इतना मुश्किल होता है कि तमाम संसाधन भी कम पड़ जाते हैं। इस बात को अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के अग्रणी देशों में वनाग्नि के हालात से समझा जा सकता है।
उत्तराखंड के इस IFS ने बनाया एडवांस एप्लीकेशन
फॉरेस्ट फायर पर कंट्रोल के लिए बेहद खास माने जा रहे फॉरेस्ट फायर एप को भारतीय वन सेवा के अधिकारी ने बनाया है। बड़ी बात यह है कि इस एप्लीकेशन को तैयार करने में कई साल का समय लगा है।
दरअसल फॉरेस्ट फायर एप को धीरे-धीरे अपग्रेड किया गया है। इस तरह APP को कुल 31वें वर्जन के रूप में मौजूदा स्वरूप मिला है। आईएफएस अधिकारी वैभव सिंह फिलहाल हरिद्वार में डीएफओ के पद पर तैनात हैं।
हमने कई सालों तक इस पर काम करने के बाद एडवांस एप बनाने में कामयाबी हासिल की है। मैंने खुद ही इसका ट्रायल भी किया है। रुद्रप्रयाग में DFO रहते हुए सबसे पहले इसका ट्रायल किया था। साल 2020 से 2022 तक रुद्रप्रयाग में फॉरेस्ट फायर कंट्रोल के लिए इसका प्रयोग किया -वैभव सिंह, एप बनाने वाले आईएफएस अधिकारी
फायर इकोलॉजिस्ट के साथ कई देशों के एप का किया अध्ययन
फॉरेस्ट फायर एप्लीकेशन को तैयार करने के लिए दुनिया के कई देशों के एप का अध्ययन किया गया है। आईएफएस अधिकारी वैभव सिंह खुद इसके लिए कनाडा भी गए. कनाडा में उन्होंने फायर इकोलॉजिस्ट के साथ इस पर काम किया। करीब 3 महीने तक एप्लीकेशन की रूपरेखा तैयार की गई।
इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका और दूसरे ऐसे तमाम देश जहां वनाग्नि एक बड़ी समस्या है, वहां के APP का अध्ययन भी किया है।
इस तरह दुनिया भर के तमाम फॉरेस्ट फायर से जुड़े एप्लीकेशन को बारीकी से मॉनिटर करने के बाद उत्तराखंड का फॉरेस्ट फायर एप्लीकेशन तैयार किया गया है।
ऐसी कई खूबियां जो दुनिया के किसी फॉरेस्ट फायर एप में नहीं
IFS अधिकारी वैभव सिंह द्वारा तैयार किए गए एप को उसकी तमाम खूबियों के कारण अब उत्तराखंड के वन विभाग ने अडॉप्ट कर लिया है। यानी उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर को लेकर अब यही एप प्रयोग में लाया जा रहा है। दरअसल इस एप्लीकेशन में ऐसी कई खूबियां हैं, जो इसे दुनिया भर के फॉरेस्ट फायर एप में सबसे बेहतर बनाती हैं।
- इस एप्लीकेशन के जरिए पूरे प्रदेश में फॉरेस्ट फायर पर निगरानी की जा सकेगी
- इस एप्लीकेशन का प्रयोग करने के बाद रिस्पॉन्स टाइम में करीब 5 से 6 घंटे का अंतर देखने को मिलेगा
- फॉरेस्ट फायर की एग्जेक्ट लोकेशन के साथ जो सूचना 6 घंटे बाद मिलती थी, उसे संबंधित रेंज के अधिकारी और कर्मचारी तक तत्काल पहुंचाया जा सकेगा।
- कर्मचारियों की लाइव लोकेशन लेने से लेकर आग लगने वाले वन क्षेत्र में वनों की केटेगरी तक का भी पता चल सकेगा 40 वाहनों की वन क्षेत्र में लोकेशन भी इस एप के जरिए पता चलती रहेगी।
फॉरेस्ट फायर की मॉनिटरिंग होगी आसान
दूसरे फेज में 40 से ज्यादा वाहनों को भी इसी तरह इससे जोड़ा जाएगा। आग लगने वाले वन क्षेत्र के 500 मीटर पर जाकर ही कर्मचारी APP को अपडेट कर पाएंगे। यानी अलर्ट आने पर कर्मचारियों को क्षेत्र में जाना ही होगा।
इस एप्लीकेशन के माध्यम से यह भी पता चल सकेगा कि आग किस चौकी या वन क्षेत्र के आसपास लगी है और इसके लिए किसकी जिम्मेदारी बनती है। इस तरह यह दुनिया की इकलौती एप्लीकेशन है जो वन क्षेत्र में फॉरेस्ट फायर की मॉनिटरिंग उससे जुड़े सभी आंकड़े वन क्षेत्र के प्रकार कर्मचारियों की लाइव लोकेशन जीपीएस से जुड़े वाहनों की मौजूदा स्थिति मौसम की फॉरेस्ट फायर से जुड़ी भविष्यवाणी कर्मचारी और आम लोगों के लिए रिस्पांस देने का विकल्प जैसी तमाम खूबियों से लैस है।
आम लोग भी एप्लीकेशन के जरिए दे पाएंगे सूचना
फिलहाल फॉरेस्ट फायर एप्लीकेशन से 7000 वन कर्मचारियों को जोड़ा गया है। जबकि भविष्य में स्वयं सहायता समूह, पंचायतों, वॉलेंटियर्स और दूसरे आम लोगों को भी इससे जोड़ा जा सकेगा।
इसमें कोई भी आम व्यक्ति जंगल में आग दिखने पर एप के माध्यम से जियो टैग लोकेशन दे सकता है। वन विभाग में APCCF (Additional Principal Chief Conservator of Forests) निशांत वर्मा कहते हैं कि-
उत्तराखंड के लिए यह एप बेहतर साबित होगा। इंटीग्रेटेड कमांड सेंटर में डैशबोर्ड के जरिए इस एप के माध्यम से विभाग प्रदेश भर की गतिविधियों को देख सकता है।
उत्तराखंड वन विभाग की वन क्षेत्र में चौकियों, निगरानी टावर्स समेत वन क्षेत्र की स्थिति को भी एप्लीकेशन में जोड़ा गया है। इससे वन विभाग को APP के जरिए खासी सुविधा मिलने जा रही है -निशांत वर्मा, एपीसीसीएफ, वन विभाग।
फाल्स अलर्ट से लेकर मौसम की भी APP देगा जानकारी
सेटेलाइट के माध्यम से पहले वन क्षेत्र में लगी आग की जानकारी संबंधित क्षेत्र के अधिकारी और कर्मचारी तक पहुंचने में काफी समय लगता था। अब सेटेलाइट से जानकारी सीधे एप्लीकेशन पर मौजूद होगी। इस दौरान फाल्स अलर्ट को भी वन विभाग कैटेगराइज कर सकेगा।
आग चीड़ के जंगलों में लगी है या बांज के जंगल जले हैं, इसकी भी वन विभाग को हाथों हाथ जानकारी मिलेगी। इतना ही नहीं भारत सरकार में मौसम विभाग से हुए अनुबंध के कारण अब इसी एप्लीकेशन पर सीधे वन क्षेत्र में मौसम की स्थिति को भी वन विभाग पूर्वानुमान के जरिए जान सकेगा।
वनाग्नि नियंत्रण में काम आएगा एप
फिलहाल फॉरेस्ट फायर मोबाइल एप उत्तराखंड में राज्य स्तर पर पहली बार इस्तेमाल होने जा रहा है। इसके जरिए वनाग्नि पर नियंत्रण को लेकर बेहतर प्रयास करते हुए इसमें कमी लाने की भी उम्मीद लगाई जा रही है।
उधर फॉरेस्ट फायर सीजन के दौरान इसके बेहतर परफॉर्मेंस की स्थिति में इसका प्रयोग देश के दूसरे राज्यों में भी किया जा सकता है।