संस्कृत साहित्य में मिलता है हिमालय के युद्ध, औषधियां, विशिष्ट फूल और आठ पैर वाले वन्यजीव का जिक्र

संस्कृत साहित्य में मिलता है हिमालय के युद्ध, औषधियां, विशिष्ट फूल और आठ पैर वाले वन्यजीव का जिक्र

रिपोर्ट- अमित भट्ट

देहरादून। संस्कृत के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋगवेद से लेकर महाभारत, कालिदास की रचनाओं में हिमालय का भूगोल, इसकी प्राकृतिक संपदा, यहां के निवासियों, नदियों, वन्यजीवों का भरपूर वर्णन मिलता है।

आज भले ही उन प्राचीन नामों को खोज पाना आसान नहीं है, लेकिन हिमालय को लेकर वैदिककाल से चला आ रहा आकर्षण आज भी बरकरार है।

हिमालय में युद्ध, यहां की औषधियों, विशिष्ट फूल और एक 08 पैरों वाले वन्यजीव का जिक्र मिलता है। जो संभवतः अब विलुप्त हो चुका है। यह बात संस्कृत के प्रख्यात विद्वान प्रो. राधा वल्लभ त्रिपाठी ने पहाड़ की ओर से आयोजित 16वें राहुल सांकृत्यायन व्याख्यान के कही।

संस्कृति साहित्य हिमालय विषय पर ऑनलाइन संबोधित करते हुए प्रो त्रिपाठी ने कहा कि, ऋगवेद और अथर्ववेद में हिमालय को हिमवंत कहा गया है। वैदिक इंडेक्स के लेखक मैक्डानाल्ड ने कहा है कि, हिमवंत शब्द का इस्तेमाल बर्फ से ढके पहाड़ों के लिए किया गया है। आर्य लोग इन्हीं पहाड़ों के आसपास रहते थे। आर्य प्रकृतिपूजक थे।

इसलिए उन्होंने बर्फ से ढके पर्वतों को देवता माना। प्रो त्रिपाठी ने कहा कि, वेदों में गंगा, यमुना के अलावा सरस्वती नदी के अदभुत सौंदर्य का वर्णन मिलता है। हिमालय में कभी समुद्र होने का वर्णन भी वेदों और ग्रंथों में मिलता है। जिनमें कहा गया है कि कुछ पर्वत समुद्र में डूब गए थे।

संस्कृत साहित्य में वर्णित हिमालय क्षेत्र के नामों की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत साहित्य में वर्णित पर्वत गंधमादन संभवतः चमोली जिले में स्थित फूलों की घाटी थी। महाभारत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अर्जुन ने शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय के इन्द्रकील पर्वत पर तप किया था।

बदरिकाश्रम का उल्लेख करते हुए प्रो त्रिपाठी ने कहा कि वहां पर कई यज्ञशालाएं, सुंदर सरोवर, बेहिचक विचरण करते वन्यजीवों का वर्णन मिलता है। कालिदास ने तो अपने पांच ग्रंथों में हिमालय की नैसर्गिकता, देवत्व, स्थानीय निवासियों, पशु-पक्षियों, घने जंगलों, नदियों का व्यापाक वर्णन किया है।

व्याख्यान में आगे महाभारत में यहां के निवासियों के कठिन जीवन का वर्णन करते हुए त्रिपाठी ने कहा कि पांडवों के महल के लिए जब हिमालय से स्फटिक पत्थर ले जाए गए तो युधिष्ठर के सामने इसका विरोध भी किया गया था।

हिमालय में युद्ध, यहां की औषधियां, विशिष्ट फूल और एक आठ पैर वाले वन्यजीव का जिक्र संस्कृत साहित्य में मिलता है।

इससे पूर्व प्रो गिरिजा पांडे ने पहाड़ की ओर से आयोजित किए जाने वाले राहुल सांकृत्यायन व्याख्यान का परिचय दिया। प्रो माया शुक्ला ने प्रो राधा वल्लभ त्रिपाठी का परिचय दिया। जबकि, डॉ बीआर पंत ने सभी का आभार जताया।

प्रो त्रिपाठी का संक्षिप्त परिचय

प्रो. राधा वल्लभ त्रिपाठी संस्कृत को आधुनिकता के साथ जोड़ कर देखने वाले देश में संस्कृत के वरिष्ठतम आचार्यों और विद्वानों में से एक हैं।

संस्कृत भाषा के प्रतिष्ठित साहित्यकार के रूप में माने जाने वाले प्रो त्रिपाठी 60 के दशक से निरंतर संस्कृत साहित्य में शोध कर रहे हैं।

प्रोफेसर त्रिपाठी शिल्पकार्न विश्वविद्यालय, बैंकॉक एवं कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क में संस्कृत के विजिटिंग प्रोफेसर और राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली के कुलपति भी रहे हैं।

साहित्यिक-सांस्कृतिक योगदान के लिए प्रो. राधाव ल्लभ त्रिपाठी को वर्ष 1994 में उनके कविता-संग्रह ‘संधानम’ के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इसके अतिरिक्त उन्हें बिरला फाउंडेशन के ‘शंकर पुरस्कार, 2016 में ‘पंडित राज सम्मान’, मीरा सम्मान सहित विगत वर्षों में अनेक संस्थाओं एवं अकादमियों की ओर से विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

अब तक प्रो. त्रिपाठी की 100 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें ‘संस्कृत कविता की लोकधर्मी परंपरा’,‘काव्यशास्त्र और काव्य’,‘लेक्चर्स ऑन नाट्यशास्त्र विश्वकोश ’ (चार खंड) आदि विशेष चर्चित रहे हैं।