उत्तराखंड के जंगलों में चार गुना हुई आग की घटनाएं। देश में सबसे अधिक जले उत्तराखंड के जंगल, पढ़ें….
देहरादून। उत्तराखंड के वन विकास के दबाव से जूझ रहे हैं। कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 45.44 प्रतिशत भाग वन होने के कारण यहां विकास की संभावनाएं सीमित हैं और बावजूद इसके प्रदेश में बड़ी सड़क परियोजनाओं से परियोजनाओं में वन भूमि हस्तांतरण मजबूरी बन जाता है।
जिस कारण फॉरेस्ट कवर कम होना स्वाभाविक भी है। वर्ष 2021 के मुकाबले वर्ष 2023 की रिपोर्ट में राज्य में वन आवरण (फारेस्ट कवर) में 22.98 वर्ग किलोमीटर की कमी देखने को मिली है।
एफएसआइ की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के 13 में से सात जिलों में वन क्षेत्रों पर दबाव देखने को मिला है। जिसके चलते इन जिलों में वनों का आवरण बढ़ने की जगह कम ही गया है। सर्वाधिक कमी 10 वर्ग किमी से अधिक की ऊधमसिंहनगर और उत्तरकाशी जिले जिले में देखने को मिली है।
वहीं, सर्वाधिक बढ़ोतरी टिहरी, राजधानी देहरादून और अल्मोड़ा में दर्ज की गई है। दूसरी तरफ देश की बात करें तो फारेस्ट कवर में 156.81 वर्ग किलोमीटर का इजाफा पाया गया है। कुल फारेस्ट और ट्री कवर में यह बढ़ोतरी 1445.81 वर्ग किलोमीटर की रही।
यह रिपोर्ट शनिवार को वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) के दीक्षांत समारोह में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने जारी की।
केंद्रीय वन मंत्री ने कहा कि पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 2.5 से 03 बिलियन टन तक अतिरिक्त कार्बन सिंक तैयार किया जाना है।
वर्तमान स्थिति के अनुसार इस लक्ष्य से अधिक की प्राप्ति की जाएगी। वन संरक्षण की दिशा में किए जा रहे तमाम प्रयास का परिणाम है कि देश के वनों का कार्बन स्टॉक 81.5 मिलियन टन बढ़कर 7285.5 मिलियन टन हो गया है।
इस खास अवसर पर भारतीय वन सर्वेक्षण के महानिदेशक अनूप सिंह, एफआरआई की निदेशक डॉ रेणु सिंह समेत वन मंत्रालय और वन विभाग के तमाम आला अधिकारी उपस्थित रहे।
अति सघन वनों ने दी राहत, हुई बढ़ोतरी
उत्तराखंड में कुल वन क्षेत्रफल 24 हजार 303 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इसमें अति सघन वन (वेरी डेंस फारेस्ट) की बात करें तो यह 5266 वर्ग किलोमीटर है। अधिकतर अति सघन वन उच्च क्षेत्रों में हैं और यह विकास के दबाव से सामान्य रूप से अछूते रहते हैं।
इस कारण इनमें 211.57 वर्ग किलोमीटर भी बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसके अलावा खुले वन क्षेत्रों में 37.55 वर्ग किलोमीटर का इजाफा पाया गया। दूसरी तरफ सामान्य सघन वन क्षेत्र में 250 वर्ग किलोमीटर से अधिक की गिरावट भी चिंता बढ़ाने वाली है।
उत्तराखंड में वन क्षेत्रों की स्थिति (वर्ग किमी में)
जिला, अति सघन, समय सघन, खुले वन, अंतर
ऊधमसिंहनगर, 157.69, 216.42, 120.06, -11.29
उत्तरकाशी, 671.29, 1644.39, 708.18, -10.65
चमोली, 442.65, 1522.23, 676.42, -9.36
चंपावत, 382.01, 571.36, 266.02, -3.28
रुद्रप्रयाग, 272.76, 582.17, 291.68, -3.23
हरिद्वार, 76.86, 274.35, 213.55, -2.47
बागेश्वर, 167.73, 741.21, 354.43, -2.36
टिहरी, 305.87, 1149.08, 767.73, 8.87
देहरादून, 680.99, 588.99, 370.32, 4.67
अल्मोड़ा, 222.24, 817.89, 682.83, 4.09
नैनीताल, 780.03, 1583.17, 503.35, 0.77
पिथौरागढ़, 518.02, 978.53, 640.78, 0.68
पौड़ी, 588.44, 1847.84, 924.27, 0.58
कुल, 5266.58, 12517.63, 6519.62, -22.98
राज्य के 36 में से 20 वन प्रभागों में घटा वन क्षेत्र
राज्य में 36 वन प्रभागों में से 20 में वन क्षेत्रों में कमी दर्ज की गई हैं। सर्वाधिक कमी की बात की जाए तो तराई सेंट्रल वन प्रभाग और सर्वाधिक बढ़ोतरी टिहरी वन प्रभाग में पाई गई है।
सर्वाधिक कमी वाले वन प्रभाग (वर्ग किमी में)
वन प्रभाग, कमी
तराई सेंट्रल, -7.55
गोविंद वन्यजीव अभयारण, -5.07
बदरीनाथ वन प्रभाग, -4.05
सर्वाधिक बढ़त वाले वन प्रभाग
टिहरी वन प्रभाग, 9.39
अल्मोड़ा वन प्रभाग, 5.42
चकराता वन प्रभाग, 4.43
प्रदेश के आबादी वाले क्षेत्रों में दबाव अधिक
भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार सर्वाधिक वन क्षेत्र 1000 से 2000 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हैं। कुल 24 हजार वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्रों में से 15 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक के वन क्षेत्र इसी ऊंचाई तक हैं।
इन्हीं क्षेत्रों में विकास का सर्वाधिक दबाव भी रहता है। लिहाजा, विकास और विनाश के बीच संतुलन बनाने के लिए माध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अधिक काम करने की जरूरत है।
ऊंचाई के हिसाब से वनों की स्थिति (मीटर में)
ऊंचाई, अति सघन, सामान्य संघन, खुले वन, कुल
500 मीटर तक, 713.24, 1501.40, 613.09, 2827.73
500 से 1000, 1193.46, 1830.75, 913.20, 3937.41
1000 से 2000, 1546.53, 5084, 3396, 10027.08
2000 से 3000, 1684.12, 3003, 1050, 5738.04
3000 से 4000, 129.22, 1094.83, 536.58, 1760.63
4000 से अधिक, 0.01, 2.88, 10.05, 12.945
उत्तराखंड में 28.24 प्रतिशत वन क्षेत्र पर चीड़ का कब्जा
प्रदेश के वनों पर सर्वाधिक चीड़ का कब्जा है। 28.24 प्रतिशत क्षेत्र पर हिमालयन चीड़ के पेड़ हैं। इसके बाद 12.8 प्रतिशत क्षेत्र में शिवालिक साल के पेड़ हैं। तीसरे स्थान पर 10.36 प्रतिशत हिस्सेदारी के रूप में मिश्रित प्रजाति के पेड़ों में ब्ल्यू पाइन आदि हैं।
घटते वनावरण पर क्या वोले वन प्रमुख, गिनाए कारण और मजबूत पक्ष बताया
उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक (हाफ/हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स) डॉ धनंजय मोहन के अनुसार भारतीय वैन सर्वेक्षण की रिपोर्ट का आधार अक्टूबर से दिसंबर 2021 की सेटेलाइट इमेजरी है।
जबकि वर्ष 2021 की रिपोर्ट का आधार अक्टूबर से दिसंबर 2019 की इमेजरी है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2020-21 में विकास कार्यों के लिए 11.42 वर्ग किलोमीटर वन भूमि का हस्तांतरण विभिन्न एजेंसियों को किया गया।
इसी तरह वर्ष 2021-22 में विकास कार्यों के लिए 11.49 वर्ग किलोमीटर वन भूमि का हस्तांतरण किया गया। प्रदेश के तराई क्षेत्र में 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में औद्योगिक/वाणिज्यिक प्रजातियों के पातन किया गया।
इस कारण भी वनावरण में कमी पाई गई है। हालांकि, वन क्षेत्रों के बाहर वनावरण में 29.55 वर्ग किलोमीटर का इजाफा हुआ है। जो कृषि वानिकी के क्षेत्र में नागरिकों का बढ़ता रुझान दर्शाता है।
इसके अलावा वनों की उत्पादकता के सूचकांक (ग्रोइंग स्टाक) में अरुणाचल प्रदेश के बाद उत्तराखंड का स्थान है। यहां वन उत्पादकता 400.02 मिलियन घन मीटर है, जो बेहतर स्थिति को दर्शाता है।
उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाएं चार गुना हुईं
बीते अग्निकाल में उत्तराखंड के जंगल आग से सर्वाधिक झुलसे। वर्ष 2022-23 में जहां आग की घटनाएं 5351 पर सिमटी थीं, वह वर्ष 2023-24 में बढ़कर 21 हजार 33 पर पहुंच गईं।
भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार नैनीताल और पौड़ी में आग की सबसे अधिक घटनाएं देखने को मिलीं।
इस तरह आग से झुलसे उत्तराखंड के जंगल
जिला, घटनाएं (2023-24)
नैनीताल, 3320
पौड़ी, 3193
अल्मोड़ा, 2810
टिहरी, 2589
उत्तरकाशी, 2457
चंपावत, 1782
चमोली, 1331
पिथौरागढ़, 1204
बागेश्वर, 805
देहरादून, 705
रुद्रप्रयाग, 489
ऊधमसिंहनगर, 289
हरिद्वार, 59
40 प्रतिशत जंगल की आग के लिए अधिक संवेदशील
राज्य में 40 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र ऐसा है, जो जंगल की आग के लिहाज से अधिक संवेदनशील है। वहीं, 39.33 प्रतिशत क्षेत्र ऐसा है, जहां आग की आशंका कम रहती है।
आग के लिहाज से संवेदनशीलता की स्थिति
संवेदनशीलता, वन क्षेत्र (प्रतिशत में)
अत्यधिक, 0.10
बहुत उच्च संवेदनशील, 12.92
उच्च संवेदनशील, 27.64
मध्यम संवेदनशील, 20.01
कम संवेदनशील, 39.33
उत्तराखंड के जंगल देश में सबसे अधिक जले
वन और उसमें रहने वाले वन्यजीवों समेत पूरी पारिस्थितिकी के लिए सबसे बड़ा खतरा है जंगल की आग। जंगल की आग कार्बन स्टाक और कार्बन सोखने की क्षमता बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों को भी हतोत्साहित करती है।
आग पर काबू करने के लिए केंद्र से लेकर राज्य और बीट स्तर तक तमाम प्रयास किए जाते हैं, लेकिन इसके बाद भी वनों को आग से बचाने की दिशा में अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) की 2023 की रिपोर्ट पर गौर करें तो देश में सबसे अधिक उत्तराखंड के जंगल चपेट में आए हैं।
एफएसआइ की रिपोर्ट के अनुसार नवंबर 2023 से जून 2024 के बीच देश में वनों में दो लाख से अधिक घटनाएं प्रकाश में आई हैं। जिसमें सर्वाधिक 21 हजार से अधिक घटनाएं उत्तराखंड में रिकार्ड की गई हैं।
नवंबर 2022 से जून 2023 के बीच राज्य में वनों में आग की 5351 घटनाएं सामने आई थीं। इस लिहाज से देश में उत्तराखंड की रैंक 13वीं थी, जबकि अब आग की सर्वाधिक घटनाओं के बाद यह रैंक पहली हो गई है। जो चिंता बढ़ाने वाली है।
इसी तरह ओडिशा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश भी सर्वाधिक वनाग्नि वाले राज्यों में शामिल हैं। जिनकी रैंक क्रमशः दूसरी से आठवीं तक है। हालांकि, देशभर में जंगल की आग की घटनाओं की बात की जाए तो बीते दो वर्षों के मुकाबले कमी पाई गई हैं।
फिर भी चौंकाने वाली बात यह है कि वर्ष 2021-22 से 2023-24 के बीच आग की कुल घटनाएं 30 हजार के आसपास सिमटी रहीं और इसके बाद यह आंकड़ा कभी भी दो लाख से नीचे नहीं पाया गया।
इसके पीछे के यह कारण भी बताए जा रहे हैं कि अब उन्नत तकनीक और व्यापक नेटवर्क से आग की छोटी बड़ी घटनाओं को रिकार्ड में लाना आसान हुआ है।
इन राज्यों में आग की सर्वाधिक घटनाएं
राज्य, घटनाएं, रैंक
उत्तराखंड, 21033, 01
ओडिशा, 20973, 02
छत्तीसगढ़, 18950, 03
आंध्र प्रदेश, 18174, 04
महाराष्ट्र, 16008, 05
मध्य प्रदेश, 15878, 06
तेलंगाना, 13479, 07
हिमाचल प्रदेश, 10136, 08
असम, 7639, 09
झारखंड, 7525, 10
सर्वाधिक प्रभावित जिलों में उत्तराखंड और ओडिशा के चार
देशभर में जंगल की आग से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले जिलों में उत्तराखंड और ओडिशा के चार जिले शामिल हैं। इसके बाद आंध्र प्रदेश के तीन जिलों के नाम हैं और छत्तीसगढ़ के दो जिले शामिल हैं। हालांकि, किसी एक जिले में आग की सर्वाधिक घटनाओं की बात करें तो महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में सबसे अधिक 7042 घटनाएं सामने आई हैं।
जंगल की आग से सर्वाधिक प्रभावित जिले
जिला, राज्य, घटनाएं
गढ़चिरौली, महाराष्ट्र, 7042
अल्लूरी सीताराम राजू, 6399
बीजापुर, छत्तीसगढ़, 5018
नैनीताल, उत्तराखंड, 3320
पौड़ी, उत्तराखंड, 3193
अल्मोड़ा, उत्तराखंड, 2810
आग से सर्वाधिक प्रभावित नेशनल पार्क
नेशनल पार्क, राज्य, घटनाएं
पापीकोंडा, आंध्र प्रदेश, 1113
इंद्रावती, छत्तीसगढ़, 1038
मानस, असम, 814
वाल्मीकि, बिहार, 705
सिमलीपाल, छत्तीसगढ़, 340
दुधवा, उत्तर प्रदेश, 330
गुरु घासी दास, छत्तीसगढ़, 291
कार्बेट, उत्तराखंड, 229
आग की बड़ी घटनाओं में भी उत्तराखंड पहले स्थान पर
भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट में आग की बड़ी घटनाओं का भी जिक्र किया गया है। जिसमें ऐसी घटनाएं शामिल की गई हैं, जो 24 घंटे से अधिक समय से लेकर 15 दिन से अधिक जारी रहीं। बड़ी घटनाओं में उत्तराखंड में सबसे अधिक 1313 घटनाएं दर्ज हैं। जो 24 घंटे से अधिक समय से 10 से 11 दिन तक रहीं। जंगल में 15 दिन से अधिक समय तक आग की एकमात्र घटना आंध्र प्रदेश में दर्ज है।
लंबे समय तक रहने की आग की स्थिति
राज्य, घटनाएं
उत्तराखंड, 1313
ओडिशा, 1131
आंध्र प्रदेश, 1073
मध्य प्रदेश, 962
छत्तीसगढ़, 928
तेलंगाना, 833
हिमाचल प्रदेश, 732
महाराष्ट्र, 668
मिजोरम, 501
असम, 471
आग से प्रभावित हुआ 34 हजार वर्ग किमी से अधिक भाग
जंगल की आग से देशभर में 34 हजार 562 वर्ग किलोमीटर वन भूभाग प्रभावित हुआ है। टाप आठ राज्यों की बात करें तो इसमें आंध्र प्रदेश का स्थान पहला है, जबकि उत्तराखंड आठवें स्थान पर है। वहीं, दिल्ली समेत सात राज्य ऐसे हैं, जहां कुछ भी क्षेत्र प्रभावित नहीं हुआ।
आग से प्रभावित क्षेत्र
राज्य, वन क्षेत्र (वर्ग किमी में)
आंध्र प्रदेश, 5286
महाराष्ट्र, 4095
तेलांगना, 3983
छत्तीसगढ़, 3812
मध्य प्रदेश, 3172
ओडिशा, 2463
कर्नाटक, 2088
उत्तराखंड, 1808