पंचायतीराज निदेशक ने जिला पंचायतीराज अधिकारी को किया मुख्यालय अटैच, लटकी निलंबन की तलवार
देहरादून। राजधानी देहरादून से पूरे प्रदेश की मशीनरी संचालित की जाती है, वहां ऐसे अधिकारी तैनात हैं, जो अपनी जिम्मेदारी के प्रति जरा भी सजग नहीं हैं। उनका अपने अधीनस्थों पर नियंत्रण नहीं है और वह भ्रष्टाचार पर भी आंखें मूंद लेते हैं।
खुद ही जांच करवाते हैं और कार्रवाई की जगह रिपोर्ट दबा लेते हैं। जिन करोड़ों रुपये के अनुदान को 10 दिन के भीतर पंचायतों को आवंटित करने की व्यवस्था है, उसे वह लैप्स करवा देते हैं। यहां तक कि निदेशक से भी पर्देदारी रखते हैं।
बात हो रही है देहरादून के जिला पंचायतीराज अधिकारी विद्या सिंह सोमनाल की। जिन्हें इन तमाम आरोपों के चलते निदेशक पंचायतीराज निधि यादव ने गुरुवार को मुख्यालय अटैच कर दिया है।
उनसे साक्ष्यों के साथ 07 दिन के भीतर आरोपों पर जवाब मांगा गया है। मौजूदा परिस्थिति बताती है कि उन पर अब निलंबन की तलवार भी लटक रही है।
निदेशक पंचायतीराज निधि यादव ने विद्या सिंह की जगह जिला सहायक पंचायतीराज अधिकारी संजय प्रकाश बडोनी को डीपीआरओ का प्रभार दिया है। वह अग्रिम आदेश तक इस पद पर बने रहेंगे।
मुख्यालय अटैच किए गए विद्या सिंह की लचर कार्यप्रणाली का पहला मामला डोईवाला में पंचायत चुनाव के लिए कराए गए परिसीमन में गड़बड़ी से जुड़ा है।
डोईवाला में सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) पद पर तैनात रहे राजेंद्र सिंह गुसाईं पर तथ्यों से छेड़छाड़ करने, अधिकारियों को गुमराह करने और बिना सक्षम अनुमति के परिसीमन में धांधली आदि के आरोप लगे हैं।
जिस पर जिलाधिकारी के आदेश के क्रम में सहायक विकास अधिकारी राजेंद्र सिंह के विरुद्ध विद्या सिंह सोमनाल ने 07 अक्टूबर को डालनवाला थाने में एफआइआर दर्ज कराई है।
निदेशक पंचायतीराज निधि यादव ने पाया कि परिसीमन की प्रक्रिया के लिए शासन की ओर से गठित समिति में डीपीआरओ सदस्य एवं सचिव के रूप में नामित हैं। इसके बाद भी प्रस्तावों के अनंतिम प्रकाशन से पूर्व डीपीआरओ के रूप में स्वयं विद्या सिंह ने तथ्यों का परीक्षण नहीं किया।
ऐसे में वह आरोपी सहायक विकास अधिकारी के समान प्रकरण में दोषी हैं। साथ ही इस एफआइआर की जानकारी निदेशक को न देना भी गंभीर कृत्य है। एफआइआर से पूर्व निदेशक की आवश्यक होती है। यहां तक कि एफआइआर के बाद भी इसकी जानकारी निदेशक को नहीं दी गई।
साइन बोर्ड लगाने में खेल, डीपीआरओ ने मूंद ली थी आंखें
पंचायतीराज निदेशक निधि यादव के नोटिस के अनुसार सहायक विकास अधिकारी राजेंद्र सिंह गुसाईं पर ग्राम पंचायतों में साइन बोर्ड लगाने के कार्यों में अधिप्राप्ति नियमावली के उल्लंघन के आरोप भी लगे हैं।
साइन बोर्ड लगाने के कार्य ग्राम प्रधान/ग्राम पंचायत विकास अधिकारी ने किए हैं और 2700 रुपये प्रति साइन बोर्ड के हिसाब से भुगतान भी उन्हीं के माध्यम से किया गया।
इस पर तल्ख टिप्पणी करते हुए निदेशक ने कहा कि या तो डीपीआरओ को विधि स्थापित नियमों की जानकारी नहीं है या उन्होंने जानबूझकर इस अनियमितता पर आंखें मूंद ली। यदि ऐसा नहीं है तो क्यों सहायक विकास अधिकारी और अन्य पर कार्रवाई अमल में नहीं लाइ गई।
DPRO ने जांच कराई और दबा दी रिपोर्ट
डोईवाला विकासखंड के ही ग्राम पंचायत प्रतीतनगर के वार्ड 05 के सदस्य आशीष जोशी ने जुलाई 2024 को शिकायती पत्र देकर गांव में विकास कार्यों में अनियमितता का आरोप लगाया था।
इस मामले में डीपीआरओ ने सहायक विकास अधिकारी राजेंद्र सिंह को जांच अधिकारी नामित किया था। जांच रिपोर्ट डीपीआरओ विद्या सिंह को 30 अगस्त को उपलब्ध करा दी गई थी। हालांकि, विद्या सिंह ने जांच रिपोर्ट दबा दी और कोई कार्रवाई नहीं की।
वहीं, वैदिक नगर (प्रतितनगर) निवासी एलम सिंह ने इस रिपोर्ट को आरटीआइ में प्राप्त किया और 06 सितंबर को निदेशक को उपलब्ध कराया। जिसके बाद ग्राम प्रधान पूजा भारद्वाज को निदेशक ने निलंबित किया। इसे निदेशक ने जिला पंचायतीराज अधिकारी के रूप में विद्या सिंह की अक्षमता करार दिया।
पंचायतों का 4.22 करोड़ का अनुदान करा दिया सरेंडर
निदेशक निधि यादव ने नोटिस में वित्तीय वर्ष 2023-24 में त्रिस्तरीय पंचायतों को अनाबद्ध अनुदान की द्वितीय किश्त के लैप्स होने का मामला भी उठाया। उन्होंने कहा कि विद्या सिंह सोमनाल ने इस राशि को समय पर अवमुक्त नहीं किया और वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर राशि को सरेंडर कर दिया गया।
जबकि केंद्रीय वित्त आयोग के अंतर्गत जारी अनुदान को 10 दिन के भीतर संबंधित पंचायतों को हस्तांतरित किया जाना अनिवार्य है। जाहिर है, यह प्रकरण भी बेहद गंभीर है।
गड़बड़ी पर हटाए गए सहायक विकास अधिकारी की जानकारी भी नहीं दी
डोईवाला विकास खंड में तमाम गड़बड़ी उजागर होने पर मुख्य विकास अधिकारी ने 03 अक्टूबर को सहायक विकास अधिकारी राजेंद्र सिंह का स्थानांतरण प्रशासनिक आधार पर चकराता कर दिया था और उनकी जगह चकराता से राजेश नेगी को डोईवाला भेजा गया था।
निदेशक ने कहा कि इस तरह के स्थानांतरण जिलाधिकारी या उनकी ओर से नामित अधिकारी की कमेटी की संस्तुति पर निदेशक स्तर से किए जाते हैं। विद्या सिंह ने इन तथ्यों से भी जिलाधिकारी/मुख्य विकास अधिकारी को अवगत नहीं कराया।
निदेशक निधि ने कहा कि इन तमाम कृत्यों को देखते हुए लगता है कि विद्या सिंह अपने कर्तव्यों के प्रति गंभीर नहीं हैं और उनका नियंत्रण अधीनस्थों पर नहीं है। इससे कार्यालय में तनाव की स्थिति पैदा हो गई है।