RTI में CCTV फुटेज उपलब्ध न करना लोक सूचना अधिकारी को पड़ा भारी। सूचना आयोग ने ठोका जुर्माना
देहरादून। किसी कार्यालय की सीसीटीवी फुटेज को आरटीआई में मांगा जा सकता है। क्योंकि सीसीटीवी फुटेज एक इलेक्ट्रानिक रूप में उपलब्ध रिकार्ड है, जिसे सूचना अधिकार के तहत मांगे जाने पर देने से तब तक इंकार नहीं किया जा सकता, जब तक कि वह राज्य की संप्रभुता, सुरक्षा एवं किसी की व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए खतरा न हो।
यह बात राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने एक अपील की सुनवाई के क्रम में जारी आदेश में कही। आयोग ने कहा कि लोक सूचना अधिकारी को सीसीटीवी फुटेज को इलेक्ट्रानिक रिकॉर्ड मानते हुए संरक्षित करना चाहिए।
ऐसे ही एक प्रकरण में फुटेज देने से इंकार करने पर सूचना आयोग ने हरिद्वार के जिला पूर्ति कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी पर 25 हजार रुपये का अधिकतम जुर्माना लगाया।
प्रकरण में फुटेज डिलीट की जा चुकी थी, तब भी लोक सूचना अधिकारी ने स्पष्ट जानकारी देने की जगह अधिनियम के तहत प्रतिबंध की गलत आड़ ली।
रुड़की (हरिद्वार निवासी) उदयवीर सिंह ने जिला पूर्ति अधिकारी, हरिद्वार के कार्यालय में लगे सीसीटीवी कैमरे की दिनांक 25.05.2023 समय 10 बजे से 3 बजे तक की रिकार्डिंग आरटीआई में मांगी थी।
उन्हें एक शिकायत की जांच के क्रम में आशंका थी कि कार्यालय में अधिकारियों ने जांच करते हुए आरोपित से पूछताछ करने की जगह कीमती उपहार या नकदी प्राप्त की है।
जिसके सापेक्ष लोक सूचना अधिकारी पूनम सैनी ने सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(1) (छ) का उल्लेख करते हुए सूचना देने से इंकार कर दिया। जिसके बाद आवेदक उदयवीर सिंह ने सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया।
आयोग के नोटिस के जवाब में लोक सूचना अधिकारी ने कहा कि सीसीटीवी कैमरे लगाते समय कार्यालयाध्यक्ष की ओर से फुटेज को संरक्षित रखे जाने संबंधी कोई आदेश अथवा निर्देश प्राप्त नहीं दिए गए थे। जिस कारण कभी भी सीसीटीवी कैमरे की फुटेज संरक्षित नहीं रखी जा सकी।
अपील पर सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने पाया कि प्रायः सूचना अधिकार अधिनियम के छूट प्राविधानों धारा (8) का उल्लेख करते हुए लोक सूचना अधिकारी सीसीटीवी फुटेज देने से इंकार करते हैं।
उन्होंने स्पष्ट किया कि सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 2(एफ) के अंतर्गत इलेक्ट्रानिक रूप में उपलब्ध रिकार्ड होने के कारण सीसीटीवी फुटेज ‘सूचना‘ के अंतर्गत प्राप्त की जा सकती है। सीसीटीवी फुटेज साक्ष्य होने के साथ ही घटनाओं एवं कथनों की पुष्टि करने में मददगार हो सकती है।
इसलिए लोक सूचना अधिकारी उसे सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत उस सीमा तक देने से इंकार नहीं कर सकते, जब तक कि वांछित सीसीटीवी फुटेज राज्य की सुरक्षा, संप्रभुता अथवा किसी की व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए खतरा न हो।
सूचना का अधिकार में सीसीटीवी फुटेज की मांग पर प्रायः संप्रभुता एवं सुरक्षा की दलील दी जाती है। हर प्रकरण में यह दलील उपयुक्त हो यह जरूरी नहीं है। अधिकांशतः इस दलील का इस्तेमाल सीसीटीवी फुटेज न देने की मंशा से किया जाता है।
सीसीटीवी फुटेज को अधिनियम की धारा (8) के अंतर्गत मानते हुए न देने का निर्णय करने का अधिकार लोक सूचना अधिकारी को उस स्थिति में है, जब वांछित फुटेज को संरक्षित रखा गया हो।
वांछित फुटेज को संरक्षित रखे बिना अधिनियम की धारा (8) को आड़ बनाकर सीसीटीवी फुटेज देने से इंकार करना साक्ष्य को मिटाने जैसा है।
यह स्पष्ट किया जाता है कि किसी भी लोक प्राधिकार में सूचना अधिकार के अंतर्गत सीसीटीवी फुटेज के लिए इंकार किये जाने से पूर्व सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत द्वितीय अपील की समय सीमा तक अनिवार्य रूप से संरक्षित किया जाना चाहिए।
समस्त लोक प्राधिकारियों को इस संबंध में लोक सूचना अधिकारियों को विधिवत निर्देशित भी किया जाना चाहिए।
प्रस्तुत अपील में गत सुनवाई पर जारी कारण बताओ नोटिस के सापेक्ष पूनम सैनी (तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी) के प्रस्तुत स्पष्टीकरण को संतोषजनक एवं सूचना अधिकार अधिनियम के अनुरूप न पाते हुए और समग्र परिस्थितियों पर विचार करते हुए आयोग ने उन पर 25 हजार रुपये का अधिकतम जुर्माना लगा दिया।
साथ ही चेतावनी जारी की गई कि वह भविष्य में सूचना का अधिकार अधिनियम के प्राविधानों के प्रति सजग रहें।
क्योंकि, इस प्रकरण में आयोग के निर्देश के क्रम में अपीलार्थी ने यह भी बता दिया था कि किस जनहित के कारण वह फुटेज मांग रहे हैं। इस फुटेज से कार्यालय या वहां के स्टाफ की सुरक्षा को कोई खतरा उत्पन्न नहीं होगा।