उत्तराखंड की इन ग्लेशियर झीलों से बड़ा खतरा। पढ़ें….
देहरादून। केंद्र सरकार में नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी NDMA द्वारा GOLF यानी ग्लेशियर लेक आउटब्रस्ट फ्लड को गंभीरता से लेते हुए लगातार हिमालय के बर्फीले बीहड़ में लगातार पिघलते ग्लेशियर से बन रही झीलों और भविष्य में उनसे आने वाली तबाही को लेकर खास तरह से सेटेलाइट और ग्राउंड इनपुट के आधार पर नजर रखी जा रही है।
इन झीलों में से जो रिस्की झीले हैं, उनकी रिपोर्ट तैयार करने के साथ-साथ झील का समाधान, जिसमें पंचर करना भी एक प्रक्रिया हैं, इसको लेकर काम किया जा रहा हैं।
केंद्र के NDMA के निर्देश पर (Uttarakhand State Disaster Management Authority यानी USDMA 2 जुलाई को टेक्निकल एक्सपीडिशन रवाना करने जा रहा है।
क्या है ग्लेशियर लेक आउटब्रस्ट फ्लड GOLF
GLOF एक तरह की भयावह बाड़ या रिसाव हैं, जो ग्लेशियर झील के टूटने या फिर झील के मारेंन के टूटने से होता है।
झील के प्राकृतिक डेम का कटाव, पानी के दबाव, हिमस्खलन, भूकंप या फिर ग्लेशियर के ढहने से हो सकता है और इसके बाद पानी का बड़े पैमाने पर निचले इलाकों में विस्थापन से शुरू हो जाता है।
उत्तराखंड की 2 बड़ी आपदाएं केदारनाथ और रैणी आपदा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। GLOFs नीचे की ओर विनाशकारी बाढ़ का कारण बनते हैं, जिससे जानमाल की हानि के साथ-साथ बड़ी और लंबी त्रासदी की संभावना बनी रहती है।
GLOF खास तौर से सभी हिमालयी राज्यों के लिए बढ़ती चिंता का विषय है। खास तौर से तब जब पूरा हिमालय एक फ्रेजाइल भूमि पर बसा है और जोशीमठ जैसे कई हिमालय टाउन मोरेन पर बसे हैं।
लंबे कालांतर से हिमालय में हो रही गतिविधि और जलवायु परिवर्तन के चलते हिमालय हैं। ऊपरी कैचमेंट में कई नई ग्लेशियल झीलें बन गई हैं।
जैसे-जैसे ग्लेशियर पीछे हटते हैं, ये झीलें अस्थिर मोरेन या बर्फ के बांधों के पीछे बनती हैं, जो भारी वर्षा, बांध के पिघलने, भूकंप या हिमस्खलन जैसे विभिन्न कारकों के कारण कोलैप्स होने के कगार पर आ जाती हैं।
जब GLOF होता है, तो कुछ ही घंटों में लाखों क्यूबिक मीटर पानी छोड़ा जा सकता है, जिससे अचानक बाढ़ आ सकती है और मलबा बह सकता है, जो सैकड़ों किलोमीटर नीचे की ओर तबाही मचाते हुए आगे बढ़ता है।
GOLF के खतरे के कम करने का क्या है समाधान
GOLF के खतरे को कम करने के लिए, कई अलग अलग तरह को रणनीतियों पर काम किया जा रहा है।
रिमोट सेंसिंग की मदद से आने वाले संभावित खतरे का आंकलन करते हुए इस तरह की खतरनाक ग्लेशियल झीलों की पहचान और मैपिंग की जा रही है। एरिया एसिसमेंट और जियो टेक्नोलॉजी से जोखिम को लेकर स्टडी की जा सकती है।
लेक बर्स्ट के खतरे को कम करने के लिए कंट्रोल्ड डिस्चार्ज, पंपिंग से पानी का रिसाव या फिर टनलिंग से झील को पंचर करके झील को अचानक कोलैप्स होने से रोका जा सकता है, जिस पर लगातार काम किया जा रहा है।
इसके अलावा खतरे वाली जगहों पर निर्माण को प्रतिबंधित और विस्थापन को लेकर भी कार्रवाई की जा सकती है।
अर्ली वार्निंग सिस्टम की मदद से लोगों को सतर्क करने के अलावा जड़ में आने वाले संभावित क्षेत्रों में खतरे से पहले तैयारी और जन जागरूकता करना भी इसका एक पहलू है।
उत्तराखंड की GOLF झीलें
उत्तराखंड ने बीतें कुछ सालों में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GOLF) के कुछ विनाशकारी आपदाओं का अनुभव किया है, जिनमें से दो महत्वपूर्ण घटनाएं जून 2013 में आई विनाशकारी केदारनाथ आपदा हैं।
जिसमें चोराबाड़ी ग्लेशियर झील टूटने से केदारनाथ घाटी में तबाही मची थी। इसके अलावा फरवरी 2021 में चमोली जिले के रैणी गांव के ऊपरी इलाके में अचानक बाढ़ आई थी, जो एक ग्लेशियर झील के अचानक टूटने से उत्पन्न हुई थी।
उत्तराखंड में तकनीकी एजेंसियों/(एनडीएमए) द्वारा 13 ग्लेशियल झीलों की पहचान की गई है, जो कमजोर हैं और डाउनस्ट्रीम बस्तियों और बड़ी आबादी के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।
चमोली और पिथौरागढ़ में 5 बेहद हाई रिस्क वाली ग्लेशियर झीलें
उत्तराखंड में GLOF के खतरे को देखते हुए 13 झीलें बेहद संवेदनशील पाई गई हैं जो कि GOLF आपदा के लिहाज से हॉटस्पॉट के रूप में पहचानी गई हैं। इनमें से भी पांच झीलें बेहद हाई रिस्क वाली हैं, जिन्हे “A” कैटेगरी में रखा गया है।
चमोली जिले के धौलीगंगा बेसिन में वसुधारा झील सहित ये झीलें अपने स्थान और विशेषताओं के कारण एक बड़ा खतरा पैदा करती नजर आ रही हैं, जिनकी समुद्र तल से ऊंचाई 4,351 से 4,868 मीटर तक है।
उत्तराखंड की 13 जोखिम वाली ग्लेशियर झीलों में से यह फैसला लिया गया है कि A केटेगिरी की हाई रिस्क वाली इन 05 झीलों का विभिन्न टेक्निकल एजेंसियों से एक विस्तृत सर्वेक्षण किया जाए और इनका समाधान किया जाए।
हाई रिस्क वाली झीलें
- वसुधारा झील, चमोली के धौलीगंगा बेसिन में मौजूद है, इसका आकार 0.50 हेक्टियर और ऊंचाई 4702 मीटर है.
- अनक्लासीफाइड झील, पिथौरागढ़ के दारमा बेसिन में 0.09 हेक्टेयर में फैली है और इसकी ऊंचाई 4794 मीटर है.
- मबान झील पिथौरागढ़ के लस्सर यांगती वैली में है. यह 0.11 हेक्टेयर में फैली है और समुद्र तल से 4351 मीटर की ऊंचाई पर है.
- अनक्लासीफाइड झील, पिथौरागढ़ की कूठी यांगति वाली में 0.04 हेक्टियर में 4868 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है.
- प्यूंग्रू झील पिथौरागढ़ की दरमा बेसिन में हैं और 0.02 हेक्टेयर में 4758 मीटर की ऊंचाई पर है.
पांचों हाई रिस्क ग्लेशियर झीलों को किया जाएगा पंचर
टेक्निकल टीम आपदा प्रबंधन सचिव के अनुसार इन पांचों हाई रिस्क ग्लेशियर झीलों की मॉनिटरिंग और मिटीगेशन के लिए एक टेक्निकल एक्सपीडिशन भेजा जा रहा है। मॉनिटरिंग के लिए मौके पर इंस्ट्रूमेंट स्थापित किए जाएंगे। साथ ही सेटेलाइट से भी उसे लिंकअप किया जाएगा।
इसके अलावा मिटीगेशन यानी न्यूनीकरण के लिए ग्लेशियर झीलों की परिस्थितियों को देखते हुए, वहां पर डिस्चार्ज क्लिप पाइप्स डाले जाएंगे, यानी की झील को पंचर करने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा।
उन्होंने बताया कि टेक्निकल टीम वहां पर जाकर हर तरह की स्टडी करेगी, जिसमें की झीलों की दीवारें कितनी मजबूत है, झीलों की गहराई कितनी है।
पिथौरागढ़ की झीलों के लिए डेलिगेशन जल्द होगा रवाना
आपदा प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार इन पांच झीलों में स्टडी और मिटीगेशन के लिए C-DACPune की नेतृत्व में WIHGDehradun, GSILucknow, NIHRoorkee, IIRSDehradun तकनीकी एजेंसियों के शोधकर्ता इस ऑपरेशन को अंजाम देंगे।
उन्होंने बताया कि वसुंधरा झील के लिए 2 जुलाई को टेक्निकल डेलिगेशन रवाना होगा। वहीं, पिथौरागढ़ की झीलों के लिए ITBP की क्लीयरेंस के बाद डेलिगेशन को रवाना किया जाएगा।