बड़ी खबर: विद्यालयों की बदहाली बयां कर मंत्री ने खोली अधिकारियों के आंखें। सभी CEO को मिला अल्टीमेटम

विद्यालयों की बदहाली बयां कर मंत्री ने खोली अधिकारियों के आंखें। सभी CEO को मिला अल्टीमेटम

शिक्षा विभाग पोर्टल पर सभी सरकारी विद्यालयों में पेयजल और शौचालय उपलब्ध होने के दावे तो करता है लेकिन विभागीय मंत्री ने विद्यालयो की बदहाली बयां कर अधिकारियों के आंखें खोल दी।

आनन-फानन में सभी मुख्य शिक्षा अधिकारी सीईओ को आदेश भेजे गए कि वह अपने-अपने जनपदों के विद्यालयों का सौंदर्यीकरण समेत सभी बुनियादी सुविधाएं बहाल करें और इसकी रिपोर्ट विभाग को 31जुलाई तक दें।

विदित रहे कि बीते 12 जून को शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत ने ननूरखेड़ा स्थित समग्र शिक्षा राज्य परियोजना सभागार में विभागीय समीक्षा बैठक ली।

बैठक में शिक्षा मंत्री ने इस बात पर गहरी नाराजगी व्यक्त की कि पिछले दिनों वह क्षेत्र भ्रमण पर गए थे तो रास्ते में कई सरकारी विद्यालय दिखे, जब वहां पहुंचकर देखा तो विद्यालय में कोई सौंदर्यीकरण नहीं मिला।

विद्यालय की खिड़की और दरवाजे टूटे हुए हैं। शौचालय में गंदगी फैली है। विद्यालय में साफ पीने के पानी की कोई सुविधा नहीं है। विद्यालयों में कलर कोड का पालन करना तो दूर की बात है कई वर्षों से रंग रोगन तक नहीं हुआ है। देखने पर वह विद्यालय ही प्रतीत नहीं हो रहे हैं।

शिक्षा मंत्री ने आदेश दिए कि जब सभी विद्यालयों के लिए सौंदर्यीकरण एवं रखरखाव के लिए विद्यालय अनुदान दिया जाता है तो फिर यह धनराशि कहां जा रही है। पर्यावरण संरक्षण के लिए यूथ एंड ईको क्लब के माध्यम से भी विद्यालयों को धनराशि दी जा रही है तो फिर सौंदर्यीकरण क्यों नहीं किया जा रहा है।

शिक्षा महानिदेशक ने सभी सीईओ को दिया अल्टीमेटम

शिक्षा मंत्री की बैठक के बाद विभागीय अधिकारियों ने अपने क्षेत्र के सरकारी कुछ विद्यालयों का जब धरातलीय निरीक्षण किया तो उन्हें भी कई बुनियादी सुविधाओं का अभाव दिखा।

जिसके बाद शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने समस्त जनपदों के मुख्य शिक्षा अधिकारी को पत्र प्रेषित कर विद्यालयों की सुविधाओं और साैंदर्यीकरण की रिपोर्ट तलब की।

महानिदेशक ने बताया कि विद्यालयों के लिए कलर कोड निर्धारित है। लेकिन देखने में आया कि कई विद्याश्ल कलर कोड का ध्यान नहीं दख रहे हैं।

विद्यालयों की इस प्रकार की बुनियादी सुविधाएं की निगरानी और रिपोर्ट तैयार करने जिम्मेदारी जनपद स्तर पर मुख्य शिक्षा अधिकारी और खंड स्तर पर खंड शिक्षा अधिकारी को इस कार्य के लिए नोडल अधिकारी नामित किया गया।

रिपोर्ट शिक्षा मुख्यालय तलब करने के बाद भी मुख्य शिक्षा अधिकारी अपने जनपद के विद्यालयों का धरातलीय निरीक्षण करते रहेंगे। ————

बजट की कमी नहीं, सरकारी नौकरी में इच्छाशक्ति का ह्रास

उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा के लिए बजट की कोई कमी नहीं है। अकेले समग्र शिक्षा परियोजना के तहत उत्तराखंड को इस बार केंद्र से 1196 करोड़ रूपये की धनराशि प्राप्त हुई है।

इसके अलावा राज्य सरकार भी प्रदेश के 13,930 प्राथमिक विद्यालयों और 2314 राजकीय इंटर कालेजों में फर्नीचलर, भवन, कक्ष-कक्षा, चोहर दिवारी, पेयजल, विद्युतीकरण, छात्र-छाात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय, पुस्तकालय, निःशुल्ककिताबों, स्मार्ट क्लासेस, खेल सामग्री,खेल मैदान, ड्रेस, जूते इत्यादि पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। सौंदर्यीकरण के लिए यूथ एं ईको क्लाबों को प्रतिवर्ष अनुदान दिया जा रहाहै।

इसके बावजूद सरकारी विद्यालय बदहाल है। इससे साफ है कि यहां नियुक्ति शिक्षक और शिक्षणेत्तर कर्मचारी सरकारी नौकरी मिलने का सुख भोग रहे हैं, जिससे उनकी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी की इच्छाशिक्त शून्य होती जा रही है।

विद्यालयी शिक्षा के उन्नयन की जिम्मेदारी अकेले शिक्षक व शिक्षा विभाग से जुडे अधिकारियों की ही नहीं है, यह अभिभावकाें और समाज के प्रत्येक व्यक्ति की है।

हां इतना जरूर है कि सरकारी विद्यालयों का सौंदर्यीकरण की पहली जिम्मेदारी विद्यालय शिक्षक, स्टाफ और छात्र-छात्राओं की है। छात्र को पौधरोपण से लेकर सौंदर्यीकरण के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी शिक्षकों की है।

जब रंग-रोगन से लेकर सौंदर्यीकरण तक का बजट दिया जा रहा है तो फिर कई स्कूल भवनों में वर्षां से रंगाई क्यों नहीं हुई। इसकी रिपोर्ट विभाग से मांगी गई है। – डा.धन सिंह रावत, शिक्षा मंत्री उत्तराखंड