मत्स्य विभाग में भर्ती के बदले मानक। शासनादेश जारी
उत्तराखंड मत्स्य विभाग की उन्नति के लिए भर्ती हेतु नए मानकों वाला शासनादेश आया है। अब मत्स्य निरीक्षक की भर्ती के लिए फिशरीज की विशेष डिग्री को अनिवार्य कर दिया गया है।
दरअसल, विभाग में 2006 से पूर्व यही मानक थे। अगर 2006 के परिणाम उठाएंगे तो 95 प्रतिशत नियुक्तियां उत्तर प्रदेश और बिहार को चली गई थी। यहां किसी भी प्रदेश के लिए पूर्वाग्रह रखे बिना साफ देखा जा सकता है कि, दोनों प्रदेशों के अभ्यर्थियों का प्रतिशत सबसे अधिक रहा है। कारण यह था कि, परीक्षा का पैटर्न स्थानीय युवाओं के पक्ष में नहीं था।
लेकिन जब नियुक्तियों में इस पद हेतु योग्यता B.SC.(ZBC), M.SC.(ZOOLOGY) की गई तथा इस पद को समूह ‘ग’ के तहत भरा गया तो 90% से अधिक नियुक्तियों में प्रदेश के अपने विश्वविद्यालयों के स्थानीय बच्चे इन परीक्षाओं में सफल होकर नियुक्त हुए।यह आँकड़े थोड़ा बहुत इसी प्रकार है। इसका सीधा कारण यह देखा गया कि, वीवी में डिग्री या डिप्लोमा प्रदान नहीं करते तो यहां के बच्चे इस प्रतियोगिता से बाहर हो जाते। जब इसकी योग्यता में B.SC /M.SC को मान्य किया गया तो इसके परिणामस्वरूप हमारे विवि के दूरदराज के छात्रों ने भी अपनी मेहनत और लगन के दम पर इसमें नियुक्ति हासिल की।अब अचानक से विभाग को तीन चार भर्तियों के बाद यह खयाल फिर आया कि नहीं, यह योग्यता( B.SC/M.SC) नाकाफी है और पुनः वही पुरानी मत्स्यिकी की योग्यता को अनिवार्य कर दिया है।
अब सवाल यह उठता है कि, विभाग को अचानक यह निर्णय क्यूँ लेना पड़ रहा है जिससे प्रदेश के 99% विश्वविद्यालयों में विज्ञान विषय से अध्ययनरत छात्र प्रतियोगिता से बाहर हो जाएँगे।
इसके सीधे-सीधे पहले की भांति कुछ विशेष संस्थानों के बच्चे ही इस पद में रह जाएंगे और पहले की तरह सारी नियुक्तियां अन्य प्रदेशों में चली जाएंगी और दूर दराज का आम छात्र जो कड़ी मेहनत और अल्प संसाधनों के साथ विज्ञान विषय को पढ़ता है, वह इस नियुक्ति के योग्य ही नहीं रह जाएगा।
दूसरी मुख्य बात, क्या विभाग यह साबित कर सकता है कि, पूर्व में विशेषज्ञ भर्ती और बाद में समूह ‘ग’ के तहत BSC/MSC द्वारा नियुक्त कार्मिकों में कार्य निष्पादन स्तर पर कोई विशेष अंतर देखा गया? क्या इनकी वजह से विभाग के कार्य निष्पादन में कोई संकट आया?
यदि वह अपने कार्य को उतने ही प्रवीणता से पूर्ण कर रहे हैं तो इस शासनादेश का आशय क्या समझा जाए? क्या यह किसी विशेष वर्ग को फायदा पहुँचाने और स्थानीय युवाओं से एक रोजगार के अवसर को छीनने के समान नहीं है?
क्या विभाग यह नहीं जानता या सरकार में बैठे अधिकारी और सचिव महोदय यह नहीं जानते कि, आपके प्रदेश के विश्वविद्यालयों में मत्स्यकि जैसा विषय उपलब्ध ही नहीं है।
यहाँ के छात्र को B.SC करने के लिए भी घर से दूर कमरा लेकर रहना पड़ता है, तब जाकर वह अपनी डिग्री हासिल करता है। ऐसी परिस्थिति में अचानक किसी निर्णय को बिना किसी जमीनी हकीकत के लागू कर देना कहाँ तक उचित है।