राफेल डील में भ्रष्टाचार, रिश्वत और मिलीभगत को दफनाने के लिए “ऑपरेशन कवर अप” उजागर
देहरादून। डॉ रागिनी नायक ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि, चोर की दाढ़ी में तिनका होता है, पर यहॉं तो दाढ़ी में पूरा का पूरा राफ़ेल फंसा हुआ है। शायद इसीलिए दाढ़ी इतनी लम्बी बढ़ाई जा रही थी!
उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी राजीव महर्षि ने बताया कि, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की प्रवक्ता डाॅ रागिनी नायक ने आज एक प्रेसवार्ता को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय देहरादून में सम्बोधित किया। जिसके मुख्य बिन्दु इस प्रकार से हैं….
मोदी सरकार द्वारा “राफेल डील” में भ्रष्टाचार, रिश्वत और मिलीभगत को दफनाने के लिए “ऑपरेशन कवर-अप” एक बार फिर उजागर हो गया है। भाजपा सरकार ने ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’का बलिदान दिया है, भारतीय वायु सेना के हितों को खतरे में डालकर देश के खजाने को हजारों करोड़ का नुकसान पहुंचाया गया है।
पिछले 5 वर्षों से संदिग्ध राफेल डील मामले में प्रत्येक आरोप और पहेली का प्रत्येक टुकड़ा मोदी सरकार में बैठे सत्ता के उच्चतम स्तर तक के लोगो तक जाता है।
“ऑपरेशन कवर-अप” में नवीनतम खुलासे से राफेल भ्रष्टाचार को दफनाने के लिए मोदी सरकार-सीबीआई-ईडी के बीच संदिग्ध सांठगांठ का पता चलता है।
4 अक्टूबर 2018 को भाजपा के दो पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और एक वरिष्ठ वकील ने राफेल सौदे में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए निदेशक, सीबीआई को शिकायत सौंपी। 11 अक्टूबर 2018 को मॉरीशस सरकार ने अपने अटॉर्नी जनरल के माध्यम से राफेल सौदे से जुड़े कमीशन के कथित भुगतान के संबंध में सीबीआई को दस्तावेजों की आपूर्ति की थी।
23 अक्टूबर 2018 को पीएम मोदी की अगुवाई वाली एक समिति ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को मध्यरात्रि में तख्तापलट कर हटा दिया, दिल्ली पुलिस के माध्यम से सीबीआई मुख्यालय पर छापा मारा और इसके नायक श्री एम नागेश्वर राव को सीबीआई प्रमुख नियुक्त किया। यह सीबीआई के माध्यम से राफेल भूत को दफनाने की एक ठोस साजिश का हिस्सा था।
मोदी सरकार और सीबीआई ने पिछले 36 महीनों से कमीशन और भ्रष्टाचार के सबूतों पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की? इसे मामले को क्यों दफनाया गया? मोदी सरकार ने मध्यरात्रि तख्तापलट में सीबीआई प्रमुख को क्यों हटाया?
राफेल घोटाला तथाकथित 60-80 करोड़ का कमीशन भुगतान नहीं है। यह सबसे बड़ा रक्षा घोटाला है और केवल एक स्वतंत्र जांच ही घोटाले का खुलासा करने में सक्षम है।कांग्रेस-यूपीए सरकार ने अंतरराष्ट्रीय टेंडर के बाद 526.10 करोड़ रुपये में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सहित एक राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए बातचीत की थी।
मोदी सरकार ने वही राफेल लड़ाकू विमान (बिना किसी निविदा के) 1670 करोड़ में खरीदा और भारत को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के बिना 36 जेट की लागत में अंतर लगभग 41,205 करोड़ है। क्या मोदी सरकार जवाब देगी कि, हम भारत में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के बिना उन्हीं 36 विमानों के लिए 41,205 करोड़ अतिरिक्त क्यों दे रहे हैं?
किसने पैसा कमाया और कितनी रिश्वत दी? जब 126 विमानों का लाइव अंतरराष्ट्रीय टेंडर था तो पीएम एकतरफा 36 विमान ‘ऑफ द शेल्फ’ कैसे खरीद सकते थे?
फ्रेंच न्यूज पोर्टल/एजेंसी-मिडियापार्ट.एफआर ने चौंकाने वाले खुलासे के ताजा सेट में उजागर किया है कि, किस प्रकार वार्ताकारों से बातचीत के अंतिम चरण के दौरान और विशेष रूप से उन्होंने विमान की कीमत की गणना उन्होंने कैसे की। इसे दसॉल्ट एविएशन (राफेल) को उपलब्ध कराई, और इस प्रकार दसॉल्ट एविएन को साफ और सीधे तौर पर फायदा हुआ।
क्या यह सही नहीं है कि, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 26-03-2019 की छापेमारी में बिचौलियों से ” रक्षा मंत्रालय के गुप्त दस्तावेज” बरामद किए हैं, जिनमें निम्न दस्तावेज शामिल हैं-क) ‘बेंचमार्क मूल्य दस्तावेज़’ दिनांक 10-08-2015 ख) रक्षा मंत्रालय के INT द्वारा ‘ आंतरिक चर्चाओं का रिकॉर्ड’ग) ‘रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा की गई गणना की गोपनीय एक्सेल शीटघ) यूरोफाइटर का भारत सरकार को 20% की छूट का काउंटर ऑफर वाला तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली को लिखा पत्र ङ) 24 जून 2014 का एक नोट, सुशेन गुप्ता द्वारा दसॉल्ट को भेजा गया, जिसमें ‘द पॉलिटिकल हाईकमान’ के साथ बैठक की पेशकश की गई थी। क्या मोदी सरकार में “हाईकमान” के साथ दसॉल्ट की ऐसी कोई बैठक
प्रेसवर्ता में मिडिया प्रभारी राजीव महर्षि, जरिता लैतफलांग, चुनाव मीडिया प्रभारी, समन्वयक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, महमंत्री संगठन मथुरादत्त जोषी, गढवाल मीडिया प्रभारी गरिमा दसौनी, प्रवक्ता प्रतिमा सिंह, लखपत बुटोला आदि उपस्थित रहे।