एक हजार से अधिक स्कूलों में शौचालय नहीं, दो हजार से अधिक में पीने के पानी का अकाल
एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार खुलासा हुआ हैं कि, उत्तराखंड में 1000 ऐसे स्कूल हैं जिनमे शौचालय नहीं हैं। साथ ही 2100 स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं है। अब इससे पता चलता हैं कि, उत्तराखंड की सरकार द्वारा शिक्षा को लेकर किये गए बड़े-बड़े वादों की नींव बिल्कुल खोखली हैं।
हाल ही में यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन ऑन स्कूल एजुकेशन प्लस (UDISE+) रिपोर्ट 2019-20 के अनुसार, उत्तराखंड में 1,000 से अधिक ऐसे स्कूल हैं, जिनके परिसर में छात्रों के लिए एक कार्यात्मक शौचालय नहीं है।
भारत सरकार के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग द्वारा संकलित और जारी की गई रिपोर्ट से पता चला है कि, उत्तराखंड के कुल 23,295 स्कूलों में से 5.02% या 1,170 स्कूलों के परिसर में एक कार्यात्मक शौचालय नहीं था।
साथ ही रिपोर्ट से पता लगा हैं कि, राज्य के सभी स्कूलों में 9.05% स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं है। जबकि पीने के पानी की सुविधा न होने वाले 2,109 स्कूलों में से 1,800 से अधिक स्कूल सरकार द्वारा चलाए जा रहे हैं।
उत्तराखंड के स्कूलों ने स्वच्छता पर बेहतर प्रदर्शन किया, सभी स्कूलों में 93 प्रतिशत से अधिक, छात्रों को हाथ धोने की सुविधा प्रदान की गई। केवल 6% से अधिक स्कूलों में यह सुविधा नहीं थी। लेकिन चिंताजनक प्रवृत्ति में, रिपोर्ट में कहा गया है कि, राज्य के सभी 16% से अधिक स्कूलों में बिजली कनेक्शन नहीं है।
जब इंटरनेट सुविधाओं वाले स्कूलों की संख्या की बात आती है, तो उत्तराखंड के सभी स्कूलों में से केवल 16.67% ही इससे लैस हैं, जिसका अर्थ है कि, राज्य के 19,000 से अधिक स्कूलों को अभी भी इंटरनेट से जोड़ा जाना बाकी है। राष्ट्रीय स्तर पर, 2019-20 में सभी स्कूलों के 22.3% में इंटरनेट उपलब्ध था।
मात्र 8000 स्कूलों में एक कार्यात्मक कंप्यूटर की सुविधा है, जिसका अर्थ है कि 65% से अधिक स्कूल कंप्यूटर से लैस हैं। अर्थात राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत के सभी स्कूलों में से 38.5% में कंप्यूटर की सुविधा है।
शिक्षाविदों का इस पर कहना है कि, हिमालयी राज्य ने बुनियादी ढांचे से संबंधित मापदंडों में कई अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है, दरअसल स्कूलों की बानगी कुछ और ही बताती है इस हेतु यहां बहुत कुछ करने की जरूरत है।
राज्य के शिक्षा विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि, उन्होंने उत्तराखंड की स्कूलों में कई मानकों पर अन्य बड़े राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया है और वे राज्य में स्कूली शिक्षा के बुनियादी ढांचे को और बेहतर बनाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। इधर नीति आयोग द्वारा तैयार एसडीजी इंडेक्स रिपोर्ट पर भी नजर डालें तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में उत्तराखंड को सभी राज्यों में चौथा स्थान दिया गया था।
कक्षा 11 और 12 के लिए जीईआर या सकल नामांकन अनुपात में राज्य का प्रदर्शन अच्छा बताया गया है जो 69.3 प्रतिशत है, यानी राष्ट्रीय औसत 51.4 से अधिक है, जबकि यहीं पर उच्च माध्यमिक कक्षाओं में लड़कियों के लिए जीईआर लड़कों की तुलना में अधिक है।
इसके अलावा, छात्र-शिक्षक-अनुपात (पीटीआर) में राज्य का प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से बेहतर रहा है। यह प्राथमिक से उच्च माध्यमिक तक सभी स्तरों पर 13.8-18.5 की सीमा में पाया गया, अर्थात राष्ट्रीय पीटीआर 18.5-26.5 की सीमा में था। कम पीटीआर शिक्षण की बेहतर गुणवत्ता का संकेत देता है। कुल मिलाकर स्पष्ट संकेत है कि, सरकार लोगों या बच्चों की देखभाल नहीं कर रही है।