सल्ट चुनाव: कांग्रेस-भाजपा में नूरा-कुश्ती, हलाल होती यूकेडी
– हरदा और गंगा का करियर दाव पर, वंशवाद के प्रतीक महेश को वाॅकओवर
– तीरथ और रंजीत रावत लड़ते तो होता सेमीफाइनल मुकाबला
– गुणानंद जखमोला
सल्ट विधानसभा उपचुनाव को मीडिया के कुछ साथी 2022 चुनाव का सेमीफाइनल बता रहे हैं, लेकिन उनका आंकलन बचकाना है। सल्ट के उम्मीदवारों को देख कोई बच्चा भी कह सकता है कि, चुनाव नहीं खेल हो रहा है। जनता को छला जा रहा है। भाजपा इमोशनल कार्ड खेल कर तो कांग्रेस भविष्य का कांटा हटाने की चाल चलकर। यह सेमीफाइनल तब होता जब मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत यहां से भाजपा के उम्मीदवार होते और रंजीत रावत उनसे टकराते। भाजपा ने वंशवाद की बेल को खाद-पानी देते हुए महेश जीना को मैदान में उतारा तो कांग्रेस ने कमजोर गंगा पंचोली को उतार कर भाजपा को वाॅकओवर सा दे दिया।
सीएम तीरथ को यहां से चुनाव मैदान में न उतार कर भाजपा ने दो संदेश दिये हैं कि, तीरथ को किसी सुरक्षित सीट से उतारा जाएगा या फिर भाजपा समयपूर्व चुनाव करा सकती है। समयपूर्व चुनाव की संभावनाएं कहीं अधिक हैं। यानी भाजपा को यह विश्वास ही नहीं था कि सीएम तीरथ सल्ट से चुनाव जीत सकते हैं। भाजपा फजीहत नहीं करवाना चाहती थी, इसलिए तीरथ सिंह को चुनाव मैदान में नहीं उतारा। तो दूसरी ओर रंजीत रावत अपने बेटे की लांचिंग करना चाहते थे और वंशवाद कहता है कि, बेटा-बेटी-पत्नी की लांचिंग तो जीत से ही हो। लोकतंत्र अब जागीरदारी में बदल चुका है।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और इंदिरा हृदयेश ग्रुप ने रंजीत रावत के साथ मिलकर सल्ट चुनाव में भाजपा को वाकओवर देने का काम किया है। सूत्रों के मुताबिक रंजीत रावत को पता है कि, उनके बेटे की राजनीतिक लांचिंग में सबसे बड़ा रोड़ा है गंगा पंचोली। उपचुनाव में एक तीर से दो शिकार हुए हैं। हरदा की निकटस्थ गंगा को टिकट दिया गया। हार तय है अगली बार गंगा टिकट की दावेदार नहीं। दूूसरे हाईकमान तक संदेश जाएगा कि, हरदा का चुनाव सही नहीं। विधानसभा चुनाव 2022 में दोनों दावेदार एक साथ साफ।
भाजपा के अधिकांश विधायक जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं। लेकिन भाजपा इमोशनल कार्ड खेल कर या मोदी नाम की माला जपकर सत्ता में चली आई और संभवतः दोबारा भी आ जाएं। जबकि भाजपा हाईकमान ने मुख्यमंत्री बदल कर स्वीकार कर लिया कि, चार साल में भाजपा सरकार चार कदम आगे नहीं बढ़ पायी। इसके बावजूद कांग्रेस ने भाजपा को वाॅकओवर दे दिया।
अब बात यूकेडी की। यूकेडी मैदान में सफाचट है और पहाड़ में होने का दम भरती है। लेकिन जो तमाशा कल हुआ उससे साफ पता चलता है कि, पार्टी में महामूर्ख नेताओं की भरमार हैं या फिर साजिशन कुछ नेता उसी साख को काट रहे हैं, जिस पर खुद बैठे हेैं। उम्मीदवार का मतदाता सूची में न होने से महेश उपाध्याय का नामांकन रद्द हो गया। 20 साल बाद भी यूकेडी की यह हालत देख पार्टी के मेहनती कार्यकर्ताओं को अपने नेताओं को कुम्भ के अवसर पर गंगा में विसर्जन कर देना चाहिए।