स्थानीय प्रशासन से मिलीभगत कर सड़कों पर फर्राटे भर रहे खनन कारोबारियों के डंपर
– खुलेआम उड़ रही लॉकडाउन की धज्जियां
रिपोर्ट- मनोज नौडियाल
कोटद्वार। कोरोना महामारी के कारण जहां पूरे देश में लॉकडाउन जारी है। वहीं उत्तराखंड सरकार ने भी विभिन्न व्यवसायों को सुबह 7:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक कुछ शर्तों के साथ खोलने की छूट दी है। वही शाम 4:00 बजे के बाद किसी को भी घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है। स्थानीय प्रशासन द्वारा विशेष परिस्थितियों में ही अनुमति जारी की जा रही है। लॉकडाउन को पालन करवाने के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा जगह-जगह पुलिस बैरिकेडिंग लगाकर कागजों की चेकिंग करने के बाद ही जाने दिया जाता है। मगर लॉकडाउन के नाम पर की जाने वाली यह चेकिंग आम नागरिकों पर ही लागू होती है।
मगर इन दिनों दिन रात सड़कों पर दौड़ते खनन कारोबार से जुड़े कारोबारियों के डंपरो पर यह चेकिंग क्यों लागू नहीं होती? आरबीएम से लदे इन प्रभावशाली लोगों के डंपर लॉकडाउन की तय समय सीमा खत्म होने के बावजूद भी आरटीओ चेक पोस्ट पुलिस चेक पोस्ट से साफ निकल जाते हैं। इनको रोकने वाला कोई नहीं होता। सवाल यह है कि, लॉकडाउन के नियमों का पालन करने की जिम्मेदारी क्या आम नागरिकों की है। सत्ता और स्थानीय प्रशासन में अपनी गहरी पैठ रखने वाले खनन कारोबारियों पर आखिर यह नियम क्यों लागू नहीं होता?
उत्तराखंड सरकार द्वारा कोटद्वार की खोह नदी में रिवर ट्रेनिंग नीति के अंतर्गत नदी को चैनेलाइज करने के लिए कुछ खनन कारोबारियों को नदियों से खुदान और ढूलान के लिए पट्टे आवंटित किए गए। जिसके चलते यह खनन कारोबारी नदियों से खुदान और ढुलना का कार्य कर रहे हैं, पर ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में स्थानीय प्रशासन से मिलीभगत कर लॉकडाउन की धज्जियां उड़ा रहे हैं। जिसपर जिम्मेदार अधिकारी मौन साधे बैठे हैं।
उत्तर प्रदेश की सीमा पर बनाई गई कौड़िया चेक पोस्ट पर तैनात पुलिस और आरटीओ के कर्मचारी भी लॉकडाउन के नियमों को तोड़ कर जाते ट्रकों से अपना मुंह मोड़ लेते हैं। इससे इन खनन कारोबारियों की पहुंच का अंदाजा लगाया जा सकता है। वहीं जब इस मामले में कोटद्वार के उप जिलाधिकारी योगेश मेहरा से पूछा गया तो उनका कहना था कि, अनुमति केवल सुबह 7:00 बजे से 4:00 बजे तक ही है। अगर इसके बावजूद भी कोई खुदान और दुलान होता है तो कार्रवाई की जाएगी।