आखिर यह कौनसा उत्तराखण्ड है, जानिए उत्तराखण्ड का कटु सत्य

आखिर यह कौनसा उत्तराखण्ड है, जानिए उत्तराखण्ड का कटु सत्य.….

पंकज कपूर
देहरादून। सबसे पवित्र स्थल, देव भूमी उत्तराखंड। सुनने में भले ही कितना आनंदमय प्रतीत होता है। लेकिन उत्तराखंड से होना ही भाईचारा, विश्वास और ईमानदारी का प्रतीक माना जाता है। ऐसी छवि है हमारे उत्तराखण्ड की पूरे विश्व में।

मगर कल्पना से दूर यहां आज ये कौनसी दिशा में उत्तराखंड जा रहा है, ऐसी किसी ने कल्पना भी नही की थी। कि, एक 10 साल की नाबालिक मासूम बच्ची आराधना का बलात्कार होगा, उसके टुकड़े-टुकड़े कर उसकी लाश पॉलीथिन में मिलेगी। उत्तरकाशी में स्कूल से आती हुई लड़की को कोई दिन दहाड़े उठा कर ले जा लेगा और उसकी लाश हमे पास के ही जंगलो में मिलेगी। ऐसी तमाम कई और घटनाओ की एक पूरी लिस्ट है।

आखिर ये कौनसा उत्तराखंड है, जहां ऐसी रूह कंपा देने वाली घटनाओं की शायद उत्तराखंड में किसी ने कल्पना भी नही की होगी।मगर अब आये दिन हमे समाचार पत्रों के माध्यम से ये सब देखने को मिलता है, मानो अबतो ये हमारे लिए रोजमर्रा की खबर हो गई हो जैसे।

 

पुराना उत्तराखण्ड तो शायद कबका मर चुका है क्योंकि, ऐसी घटनाओं की कभी इस उत्तराखंड ने कल्पना भी नही की थी, आज रूह कांप जाती ये सब सुनके की देवताओ के निवास स्थान, पूजनीय देवभूमि, जिसे पूरा विश्व पूजता है। उसमें ऐसी घटनायें अब लोगो को आम सी लगने लगी है।

हम उस सभ्यता से आते है जंहा अतिथि देवो भव: की परंपरा है। पर कौन है ये अतिथि? परंपरा तो हमने बनाली लेकिन इसमे आज तक गोर नही किया कि, ये कौनसी परंपरा की ओर हम अग्रसर है।

माफ कीजियेगा मगर उत्तराखंड में होने वाली सारी घटनाओ का जिम्मेदार आज ये अतिथि है। अतिथि से अभिप्राय है कि, जो लोग मूल रूप से उत्तराखंड से नही है। क्योंकि, कोई भी रिपोर्ट उठा के देख ली जाए तो सारी क्राइम लिस्ट में इन अतिथियों की भरमार है। 90% क्राइम के पीछे आज बाहरी प्रवासियों का हाथ है। जो अब तथाकथित उत्तराखंडी बने हुवे है।

अब सवाल यह उठता है कि, कोन जिम्मेदार है इन सभी घटनाओं का। ये अतिथि जो कभी भी राक्षस रूप धारण कर लेते है, या फिर हम जिम्मेदार है, जो देवता और राक्षसों में फर्क तक न जान सके और कब ये घटनाएं हमारे लिए आम सी होने लगी हमे पता ही नही चला।

अब इसे दुबारा से वही पुराना उत्तराखंड कैसे बनाया जाए में फिलहाल यह नही जानता। मगर में इतना जरूर जनता हूँ कि, जिस भूमि में 5-10 साल की बच्चीयों के बलात्कार और निर्मम हत्याओ का होना लोगों को जब आम लगने लगे, ऐसी घटनाएं जब हमारे निजी जीवन मे समाचर पत्रो का हिस्सा बनने लगे, तो वह भूमि कभी देव-भूमि हो ही नही सकती।

ऐसे नपुंसक लोगो की भूमि में देवताओ का क्या काम?
अब ये ही रह गया उत्तराखण्ड का कटु सत्य।